छेरछेरा छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख पारंपरिक पर्व है, जिसे ग्रामीण और आदिवासी समाज बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाता है। यह पर्व मुख्य रूप से फसल कटाई के बाद मनाया जाता है और इसे "दान और सहयोग का पर्व" भी कहा जाता है। छेरछेरा का आयोजन हर साल पौष माह की पूर्णिमा (पौष पुर्णिमा) को होता है।
छेरछेरा का अर्थ
छेरछेरा शब्द का अर्थ है “दान देना और सहयोग करना।” इस दिन लोग घर-घर जाकर अनाज, धन, या अन्य वस्तुएं मांगते हैं और इसे सामूहिक दान के रूप में इकट्ठा करते हैं। इस प्रक्रिया में लोकगीत और पारंपरिक नृत्य का आयोजन भी किया जाता है। यह त्योहार समाज में सहयोग, समानता और सामूहिकता का संदेश देता है।
छेरछेरा पर्व की परंपराएं
1. दान की परंपरा
- छेरछेरा के दिन लोग घर-घर जाकर "छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा" गाते हैं।
- ग्रामीण और किसान अपनी फसल का कुछ हिस्सा या धन दान में देते हैं।
- यह दान सामूहिक कार्यों या गरीबों की सहायता के लिए प्रयोग होता है।
2. सामूहिकता का प्रतीक
- इस दिन सभी वर्ग के लोग एकत्र होकर पर्व मनाते हैं।
- दान से समाज में सहयोग और एकता का संदेश मिलता है।
3. खेल और नृत्य
- छेरछेरा के दिन पारंपरिक खेल और नृत्य का आयोजन किया जाता है।
- गांव के लोग ढोल-मंजीरे के साथ पारंपरिक गीत गाते हैं।
4. खेतिहर समाज का सम्मान
- इस पर्व के माध्यम से किसान और उनकी मेहनत को सम्मान दिया जाता है।
- यह पर्व किसानों के लिए खुशी का अवसर होता है क्योंकि यह फसल कटाई के बाद आता है।
छेरछेरा पर्व का महत्व
- छेरछेरा समाज में समरसता और समानता का संदेश देता है।
- यह पर्व अमीर-गरीब के भेदभाव को मिटाकर सभी को एक मंच पर लाता है।
- इस पर्व के माध्यम से प्रकृति और फसल का आभार प्रकट किया जाता है।
- यह किसानों और उनकी मेहनत का सम्मान करता है।
- छेरछेरा में जो दान इकट्ठा होता है, उसका उपयोग सामूहिक कार्यों जैसे मंदिर निर्माण, समाज सुधार, या जरूरतमंदों की सहायता के लिए किया जाता है।
- यह पर्व छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर को सहेजने में मदद करता है।
- लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक रीति-रिवाज इस पर्व के मुख्य आकर्षण होते हैं।
कैसे मनाया जाता है छेरछेरा?
आधुनिक समय में छेरछेरा का महत्व
आज के दौर में जब त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है, छेरछेरा हमें अपने पारंपरिक मूल्यों और जड़ों से जोड़ने का काम करता है। यह पर्व न केवल खुशी और उल्लास का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समरसता और सामूहिकता का संदेश भी देता है।
निष्कर्ष
छेरछेरा केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत और ग्रामीण समाज की एकता का प्रतीक है। यह हमें प्रकृति का सम्मान करने, सामूहिकता में विश्वास रखने और समाज में समानता का पालन करने की प्रेरणा देता है।
"छेरछेरा पर्व हमें सिखाता है कि दान, सहयोग और सामूहिक प्रयास से समाज को अधिक सशक्त और समृद्ध बनाया जा सकता है।"