India broke the Indus Water Treaty: क्या पाकिस्तान जल संकट की कगार पर है?

क्या खत्म हो रही है इंडस जल संधि?

भारत-पाक संबंधों में एक नया मोड़

भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित "इंडस वॉटर ट्रीटी" (Indus Water Treaty) अब एक बार फिर सुर्खियों में है। यह संधि, जो दशकों से दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर स्थिरता बनाए रखने का आधार रही है, अब संकट के दौर में नजर आ रही है। भारत की ओर से इसके पुनः मूल्यांकन और संशोधन की संभावनाओं ने भू-राजनीतिक स्तर पर हलचल पैदा कर दी है।

इंडस जल संधि क्या है?

इंडस जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके अंतर्गत छह नदियों — सिंधु, झेलम, चेनाब (पश्चिमी नदियाँ), और रावी, व्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ) — को बांटा गया। संधि के अनुसार, पूर्वी नदियों पर भारत को पूर्ण नियंत्रण मिला जबकि पश्चिमी नदियाँ पाकिस्तान को दी गईं, हालाँकि भारत को भी सीमित उपयोग (सिंचाई, पनबिजली आदि) की अनुमति मिली।

क्यों उठ रहा है संधि को खत्म करने का मुद्दा?

पिछले कुछ वर्षों में, खासकर पुलवामा हमले (2019) और उरी हमले (2016) जैसे आतंकी घटनाओं के बाद भारत में यह विचार तेजी से मजबूत हुआ है कि पाकिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा दिए जाने के बावजूद भारत अब भी उसे पानी जैसे महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में कहा था, "पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।" यह बयान संधि पर भारत की बदलती सोच का संकेत था।

भारत की रणनीतिक स्थिति

भारत ने हाल ही में यह संकेत दिए हैं कि वह इंडस जल संधि की समीक्षा करना चाहता है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत अगर पश्चिमी नदियों के अपने हिस्से का अधिकतम उपयोग करता है — जैसे कि डैम बनाना, सिंचाई परियोजनाएं या पनबिजली संयंत्र — तो यह संधि के दायरे में रहकर भी पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है।

इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पनबिजली परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रही है। किशनगंगा और रटले जैसे प्रोजेक्ट्स को लेकर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है, लेकिन भारत का दावा है कि ये प्रोजेक्ट संधि के प्रावधानों के अनुसार हैं।

पाकिस्तान की चिंता

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही संकट में है और कृषि पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक है। पश्चिमी नदियाँ — खासकर सिंधु और झेलम — पाकिस्तान के सिंचाई तंत्र की जीवनरेखा हैं। यदि भारत इन नदियों के जल का अधिक प्रयोग करना शुरू करता है, तो पाकिस्तान को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।

पाकिस्तानी विशेषज्ञों और मीडिया में यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि भारत ‘जल-युद्ध’ (Water War) की ओर बढ़ रहा है, और यह उसके लिए अस्तित्व का प्रश्न बन सकता है।

क्या भारत संधि से बाहर निकल सकता है?

तकनीकी रूप से भारत यदि चाहता है, तो वह संधि को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सहारा ले सकता है। हालांकि, यह कदम भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहाँ दो शत्रु देशों के बीच जल-साझेदारी इतनी लंबी अवधि तक बनी रही।

यदि भारत संधि को एकतरफा खत्म करता है, तो यह मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या संयुक्त राष्ट्र तक भी पहुँच सकता है, जिससे वैश्विक दबाव बन सकता है।

जल को हथियार बनाना – नैतिक या रणनीतिक?

यह एक बड़ा सवाल है कि क्या जल संसाधनों को कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना उचित है? भारत हमेशा से 'जल-राजनीति' से परहेज करता रहा है, लेकिन बदलते वैश्विक समीकरण और आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख ने इस नीति को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

भारत की सोच यह है कि यदि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद बंद नहीं करता, तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी — और जल उस कीमत का एक रूप हो सकता है।

निष्कर्ष

इंडस जल संधि का भविष्य अब भारत-पाक रिश्तों पर और खासकर सीमा पार आतंकी गतिविधियों पर निर्भर करता है। भारत के पास यह अवसर है कि वह अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करे, लेकिन इस प्रक्रिया में वैश्विक दबाव और नैतिकता की कसौटी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सवाल यह नहीं है कि क्या भारत संधि को तोड़ेगा या नहीं, सवाल यह है कि क्या भारत अब ‘जल-नीति’ के मोर्चे पर भी निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है?


आपकी राय क्या है? क्या भारत को इंडस जल संधि को खत्म कर देना चाहिए या फिर इसे बनाए रखते हुए पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए? नीचे कमेंट करें और चर्चा में भाग लें।

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